बचपन वाला वो "रविवार" अब नही आता
दोस्त पे अब वो प्यार नही आता
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घड़ी देखे
अब घड़ी मे वो समय और वो वार नही आता
बचपन वाला वो "रविवार" अब नही आता
वो बायसिकल अब भी मुझे याद है जिसपे मैं उसके पीछे बैठ के खुश हो जया करता था
अब उसकी कार मे भी आराम नही आता
जीवन की राहो मे ऐसी उल्ज़ी है गुत्थियाँ
उसके घर के सामने से जा कर के भी उससे मिलना नही हो पता
वो मोगली, वो अंकल स्क्रूज़, ये जो है ज़िंदगी, सुरभि, रंगोली और वो चित्रहार अब नही आता
रामायण,- महाभारत, चाणकया का वो चाव अब नही आता
बचपन वाला वो "रविवार" अब नही आता
अब हर वार सोमवार है,
काम, ऑफीस, बॉस, बीवी, बच्चे
बस यही ज़िंदगी है
दोस्त से दिल की बात का इज़हार नही हो पता
बचपन वाला वो "रविवार" अब नही आता
बचपन वाला वो "रविवार" अब नही आता
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